कविता- फ़िराक़ गोरखपुरी - Er. Nitin - Just Enjoy Life Forgetting World.

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शनिवार

कविता- फ़िराक़ गोरखपुरी



ये तो नहीं कि ग़म नहीं



ये तो नहीं कि ग़म नहीं

हाँ! मेरी आँख नम नहीं 


तुम भी तो तुम नहीं हो आज 
हम भी तो आज हम नहीं

Er Nitin
फ़िराक़ गोरखपुरी



नश्शा संभाले है मुझे 
बहके हुए क़दम नहीं




क़ादिरे दोजहॉं है गरे 
इश्कि के दम में दम नहीं




मौत अगरचे मौत है 
मौत से ज़ीस्त कम नहीं 


अब न खुशी की है खुशी
ग़म का भी अब तो ग़म नहीं 


मेरी नशिस्त है ज़मीं 
खुल्द नहीं हरम नहीं 


क़ीमत-ए-हुस्न दो जहाँ 
कोई बड़ी रक़म नहीं




अहदे वफ़ा है हुस्ने -यार 
क़ौल नहीं क़सम नही 


लेते हैं मोल दो जहाँ 
दाम नहीं दिरम नहीं


सौम-ओ-सलात से ‘फ़िराक़ ‘ 
मेरे गुनाह कम नहीं



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