ये तो नहीं कि ग़म नहीं
ये तो नहीं कि ग़म नहीं
हाँ! मेरी आँख नम नहीं
तुम भी तो तुम नहीं हो आज
हम भी तो आज हम नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी |
नश्शा संभाले है मुझे
बहके हुए क़दम नहीं
क़ादिरे दोजहॉं है गरे
इश्कि के दम में दम नहीं
मौत अगरचे मौत है
मौत से ज़ीस्त कम नहीं
अब न खुशी की है खुशी
ग़म का भी अब तो ग़म नहीं
मेरी नशिस्त है ज़मीं
खुल्द नहीं हरम नहीं
क़ीमत-ए-हुस्न दो जहाँ
कोई बड़ी रक़म नहीं
अहदे वफ़ा है हुस्ने -यार
क़ौल नहीं क़सम नही
लेते हैं मोल दो जहाँ
दाम नहीं दिरम नहीं
सौम-ओ-सलात से ‘फ़िराक़ ‘
मेरे गुनाह कम नहीं