कोई दीवाना कहता है| Koi Deewana Kahta hai -------By Dr. Kumar Vishwas - Er. Nitin - Just Enjoy Life Forgetting World.

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बुधवार

कोई दीवाना कहता है| Koi Deewana Kahta hai -------By Dr. Kumar Vishwas


कोई दीवाना कहता है



कोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
 मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
 मैं तुझसे दूर कैसा हूँ, तू मुझसे दूर कैसी है
 ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है

मुहब्बत एक अहसासों की पावन-सी कहानी है
 कभी कबीरा दीवाना था, कभी मीरा दीवानी है
 यहां सब लोग कहते हैं मेरी आँखों में आँसू हैं
 जो तू समझे तो मोती है, जो ना समझे तो पानी है

बदलने को तो इन आँखों के मंज़र कम नहीं बदले
 तुम्हारी याद के मौसम, हमारे गम नहीं बदले
 तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी तब तो मानोगी
 जमाने और सदी की इस बदल में हम नहीं बदले

हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते
 मगर रस्मे-वफा ये है कि ये भी कह नहीं सकते
 जरा कुछ देर तुम उन साहिलों की चीख सुन भर लो
 जो लहरों में तो डूबे हैं, मगर संग बह नहीं सकते

समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता
 ये आँसू प्यार का मोती है इसको खो नहीं सकता
 मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना
 मगर सुन ले जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता

मिले हर जख्म को, मुस्कान से सीना नहीं आया
 अमरता चाहते थे, पर गरल पीना नहीं आया
 तुम्हारी और मेरी दास्तां में फर्क़ इतना है
 मुझे मरना नहीं आया, तुम्हें जीना नहीं आया

पनाहों में जो आया हो तो उस पे वार क्या करना
 जो दिल हारा हुआ हो उस पे फिर अधिकार क्या करना
 मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कशमकश में है हो
 ग़र मालमू गहराई तो दरिया पार क्या करना

जहाँ हर दिन सिसकना है, जहाँ हर रात गाना है
 हमारी ज़िन्दगी भी इक तवायफ़ का घराना है
 बहुत मजबूर होकर गीत रोटी के लिखे
 मैंने तुम्हारी याद का क्या है उसे तो रोज़ आना है

तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है, समझता हूँ
 तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है, समझता हूँ
 तुम्हें मैं भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन
 तुम्हीं को भूलना सबसे जरूरी है, समझता हूँ

 मैं जब भी तेज़ चलता हूँ नज़ारे छूट जाते हैं
 कोई जब रूप गढ़ता हूँ तो साँचे टूट जाते हैं
 मैं रोता हूँ तो आकर लोग कंधा थपथपाते हैं
 मैं हँसता हूँ तो अक़सर लोग मुझसे रूठ जाते हैं 

सदा तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता
 खुशी के घर में भी बोलो कभी क्या ग़म नहीं होता
 फ़क़त इक आदमी के वास्ते जग छोड़ने वालों
 फ़क़त उस आदमी से ये ज़माना कम नहीं होता

 हमारे वास्ते कोई दुआ मांगे, असर तो हो 
हक़ीक़त में कहीं पर हो न हो आँखों में घर तो हो 
तुम्हारे प्यार की बातें सुनाते हैं ज़माने को 
तुम्हें ख़बरों में रखते हैं मगर तुमको ख़बर तो हो

 बताऊँ क्या मुझे ऐसे सहारों ने सताया है 
नदी तो कुछ नहीं बोली किनारों ने सताया है 
सदा ही शूल मेरी राह से खुद हट गये लेकिन 
मुझे तो हर घड़ी, हर पल बहारों ने सताया है 

हर इक नदिया के होंठों पर समन्दर का तराना है 
यहाँ फरहाद के आगे सदा कोई बहाना है 
वही बातें पुरानी थीं, वही किस्सा पुराना है 
तुम्हारे और मेरे बीच में फिर से ज़माना है 

मेरा प्रतिमान आँसू में भिगोकर गढ़ लिया होता 
अकिंचन पाँव तब आगे तुम्हारा बढ़ लिया होता 
मेरी आँखों में भी अंकित समर्पण की ऋचाएँ थीं 
उन्हें कुछ अर्थ मिल जाता तो जो तुमने पढ़ लिया होता 

कोई खामोश है इतना बहाने भूल आया हूँ 
किसी की इक तरन्नुम में तराने भूल आया हूँ 
मेरी अब राह मत तकना कभी ऐ आसमां वालों 
मैं इक चिड़िया की आँखों में उड़ाने भूल आया हूँ

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